Sunday, November 3, 2013

दिवाली सही मायनों में

पटाखे

दिवाली आने से करीब महीना पहले ही पटाखे छूटने शुरू हो जाते हैं और जैसे जैसे दिवाली नज़दीक आती है इनका भी जोर बढता जाता है ,इसमें अगर हम सिर्फ बच्चों क दोष दें तो गलत होगा ,क्योकि बच्चे तो ऐसी शरारतों से खुश होते ही हैं लेकिन बड़े भी उनका साथ दे कर उनका होंसला बढ़ाते हैं ,और दिवाली वाली रात तो आसमान नज़र ही नहीं आता है ,बस धुआं ही धुआं होता है चारो और ,पटाखे छोड़ने की होड़ लगी होती है की कौन सब ज्यादा और महंगे पटाखे छोड़ेगा ,इसमें वातावरण भी दूषित होता है और पैसो को भी आग लगती है ,लेकिन इस होड़ में इस बर्बादी को नज़र अंदाज़ कर दिया जाता है ,कितने ही मरीज़ धुयें से प्रभावित होते हैं ,अस्थमा के मरीजों का तो हाल ही मत पूछिये लेकिन ये सब आधी रात के बाद तक चलता रहता है
क्या हम सिर्फ पूजा कर के या आपस में बैठ कर हंसी ठिठोली कर के दिवाली नहीं मन सकते ,क्या पैसो को आग लगानी ज़रूरी है ,क्या ये पर्यावरण के लिए ठीक है ,छोटे बच्चो को सांस की मुश्किल हो जाती है लेकिन कोई धयान नहीं देता ,खुशियाँ क्या दूसरों को मुश्किल में दाल कर ही मिलती हैं ,क्या खुशियों का मोल मरीजों को बढाना और घर के बजट में आग लगाना ही है ,दिए जलाओ ,घर की साफ़ सफाई करो ,पूजा अर्चना करो ,एक दुसरे से मिलने जाओ लेकिन प्यार से न की जबरदस्ती के तोहफों के लिए ,वो ही पैसा आप किसी गरीब को दान नहीं कर सकते क्या ,
अनाथ बच्चो के साथ खेलो ,उन्हें भी त्यौहार का पता चले
अंध विद्यालय जाइए ,वहां बच्चों को तरह तरह की मिठाई खिलाईये ,जो उन्होंने कभी चखी भी नहीं होगी ,तो आप के पैसे खर्चने का सही अर्थ होगा ,ना की आपस में मिठाई बांटते रहो ,और इतनी मिठाई इकठी हो जाती है की बासी होने पर फेंकनी पड़ती है
ख़ुशी उनके साथ मनाओ जो ख़ुशी के लिए तरसते हैं
तभी आप की पूजा ,आप की दिवाली सही मायनों में दिवाली होगी

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