Friday, June 1, 2012

प्रवासी भारतीय

भारतीय होना बहुत गर्व की बात है और प्रवासी भारतीय को तो 
वैसे भी सब सम्मान की नज़र से ही देखते हैं सब ,लेकिन कभी 
किसी ने सोचा है वो अपने देश से दूर ,अपनों से दूर कैसे रहता है 
वो ,अपनों के लिए पैसा कमाने अपने देश से विदेश गया वो ,वहीँ 
क्यों बस जाता है ,क्या उसे अपने देश या अपनों की याद नहीं आती ..
          आती है बहुत याद आती है उसे अपने देश की ,देश में रहने 
वालो की ,देश में रहनेवालों से ज्यादा बहुत ज्यादा याद आती है ,
लेकिन मजबूरियाँ उसे वापस आने नहीं देती ,पैसा उसके पांव की 
जंजीर बन जाता है और बाद में जब वो वापस आना चाहता है तो 
छह कर भी आ नहीं पाता,उसका वहाँ रहने का आदि हो चुका परिवार 
वापस आना नहीं चाहता ,और उसे खुद से समझौता करके वहीँ रहना 
पड़ जाता है |
           जब वो बाहर गया था तो अपने माँ बाप भाई बहिन या पत्नी के लिए पैसा कमाने ,इसी लिए उसका देश छुटा,अपने छूटे ,संगी साथी छूटे ,उसने सब सहा ,जब भी होली ,दीवाली या राखी आती तो किसी कोने में छिप कर दो आंसू बहा लेता और अपने घरवालो को बहुत सा पैसा भेज कर 
खुशी महसूस करता कि चलो वो न सही उसके घरवाले तो खुश हैं ,वो तो खुशी से त्यौहार मना रहे हैं ,लेकिन उसका दिल रोता उन होली के रंगों और दीवाली के पटाखों कि आवाज़ याद कर के ,राखी पर जब अपनी सूनी कलाई देखता और बिना टीका हुए माथे को तो मुंह छिपा लेता अपना खुद से भी | काम में तो कभी कभी उसे कई त्योहारों का उसे पता ही नहीं चलता    ,जब भी वापस जाने कि सोचता तो घर से कोई और नए खर्चे कि चिट्ठी आ जाती जो उसे वापस जाने से रोक देती |
            जब बहुत अकेला हो गया तो शादी भी कर ली घरवालो से पूछ कर ,शादी हुई तो बच्चे भी हो गए ,खर्चे और बड गए तो मेहनत भी और बड गयी ,अपने देश जाना और कम होता गया ,धीरे धीरे समय गुजरता गया बच्चे बड़े हो गए और अपने अपने काम में व्यस्त हो गए और उसे कुछ समय मिला तो वो अपने देश जाने को फिर से सोचने लगा ,उसका फिर से दिल चाहा अपने देश जाकर रहने के लिए और इस बार वो चला भी गया ,लेकिन वहाँ जाकर देखा तो सब बदल चुका था ,माँ बाप बुडे हो गए थे ,भाई बहन सभी अपनी अपनी ग्रहस्थी में व्यस्त हो चुके थे ,संगी साथियों में कोई कहीं तो कोई कहीं चला गया था ,सब उसके साथ कितना परायो वाला व्यवहार कर रहे थे ,कैसे सब अपने अपने तोहफे लेकर इधर उधर हो गए थे और कुछ ही दिनों बाद दबी जुबान से पूछने लगे थे और कितने दिन हो यहाँ ,वो फिर किसी कोने में छिप कर रो पड़ा कि क्या वो इन सब के लिए अपने परिवार से लड़ कर यहाँ आया था ,लेकिन यहाँ तो उसे कोई अपना नहीं लग रहा था ,न वो पहले वाला प्यार न वो धींगा मस्ती न वो माँ का लाड न बाबा कि फटकार ,वो बहन को छेड़ना ,पड़ोसियों को तंग करना ,वो होली के रंग वो दीवाली के पटाखे .........
             ये क्या हो गया सब ,इतना सब कैसे बदल गया ,वो क्या इन सब के लिए इतना तडपता तरसता रहा था ,क्या इन सब के लिए वो सालो रोया और तरसा है ,नहीं अब यहाँ कोई अपना नहीं रहा ,अब यहाँ से उसे वापस जाना ही है अपने बच्चो के पास ,अब वोही सिर्फ उसका परिवार है समझ गया था वो ,और वहाँ रहनेवाले ही उसके सगे सम्बन्धी थे ,और वो वापस आ गया ,अब ये विदेश नहीं उसे उसका अपना देश लग रहा था ,वो फिर पहले कि तरह पैसे भेजने लगा तो फिर से पहले कि तरह चिट्ठियां आने लगी कि अब फिर कब आओगे ,जब आओ तो ये सामान लेते आना ,तुम्हे सब याद करते हैं |
            एक बार फिर से ठेस लगी उसके मन को ,कि उसब उसे याद करते हैं ये कोई नहीं कहता कि बहुत हो गया अब घर वापस आ जाओ ,तुम्हारे बिन न होली है न दीवाली ,राखी पर तुम्हारी बहन तुम्हे याद करती है ,लेकिन ये सब तो कोई नहीं कहता उससे ,वो सब खुश हैं उसके बिना बस वो ही एक तनहा है ,वो भारतीय से प्रवासी भारतीय बन चुका था और से दर्द ये सूनापन उसकी तकदीर ........

8 comments:

  1. अच्छी रचना. क्या ऐसा होता है? आज मुझे प्रवासी भारतियों का ये पक्ष भी पता चला.

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    1. ऐसा ही होता है रीता जी बस कुछ अपनों को छोड़ कर ....सब यही बर्ताव करते है

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  2. wakai hi ek pravaasi bhartiye ka dard ek bhartiye nhi samjh skta.....

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  3. ओह ...जानकार दुःख हुआ ...इस तरह की मानसिकता पर

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