Sunday, March 9, 2014

नारी और दिखावा

 
हर रोज़ काम में जुटी महिला ये भूल ही जाती है की कोई उसका दिन भी होगा ,लेकिन क्या वो दिन सच में उसका होता है ,उस दिन सिर्फ एक दिन साल में ३६५ दिनों में से एक दिन वो अपनी मर्ज़ी कर सकती है ,जो चाहे वो कर सकती है ,टांग पर टांग चडा कर चाय का एक क...प पी सकती है ,सो सकती है ,कहीं घुमने जा सकती है......अगर नहीं तो काहे का महिला दिवस ....उसे तो रोज़ के काम पूरे करने हैं ,हाँ उसे बहलाने के लिए पति और बचे फूल दे देंगे और घुमने के नाम पर रात का खाना किसी छोटे मोटे होटल में खिला कर संतुष्ट हो जाते हैं और महिला मूंह खोले देखती रह जाती है
         इसके विपरीत विदेशों में औरतें इस दिन को सच में मनाती हैं ,पार्टियां होती हैं ,हंसी के कहकहों से सारा घर गूंजता है ,उस दिन उसे एहसास दिलाया जाता है की वो घर के लिए उन सब के लिए कितनी महत्वपूर्ण हैं ,औरत अपने अन्दर इस एहसास को ले कर फिर से जी उठती है
        फिर हमारे देश में ऐसा क्यों नहीं ,क्यों सिर्फ दिखावा ही होता है अधिकतर घरो में ,क्यों उसे वो सम्मान नहीं मिलता जिसकी वो हकदार है ,कुछ एक घरो को छोड़ कर बाकि सब में दिखावा ही होता है
 

2 comments:

  1. malum hi nahi hai ki ye bhi koi din hai ...manana to dur ki baat hai ...

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