Thursday, March 14, 2013

परिवार

परिवार

काश इतना प्यार हर परिवार में हो ,पति इतना समझदार और बच्चे ख्याल रखनेवाले हों तो घर स्वर्ग सामान हो जायेगा ,लेकिन ये सब

 विदेशों में ही क्यों ,अपने देश में पत्नी को पावं की जुटी क्यों समझा जाता है ,बच्चे भी आज कल टी वी देख कर मुह तोड़ कर जवाब देते

 हैं ,क्यों

हमारे सरे संस्कार कहाँ दफ़न हो गए

एक औरत क्या चाहती है सिर्फ थोडा सा प्यार ,बदले में वो अपनी जान भी दे देती है ,इस औरत ने भी अपने परिवार के लिए अपनी ये

हालत कर ली ,लेकिन उसका परिवार उसके साथ है


ये ही उसका गुरुर है


सलाम है ऐसे परिवार को
 

6 comments:

  1. बहुत बड़ी और गहरी बात कही है इन पंक्तियों में. भारतीय संस्कृति और संस्कार अब केवल किताबों में दफ़न हो कर रह गए हैं. इन किताबों से ही विदेशी अपना रहे हैं ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार योग. अब तो यह ख़तरा भी मंडराता दिख रहा है कि हमारी बहुमूल्य जड़ी, बूटियां यहां तक कि हल्दी और बासमती चावल तक विदेशों में पेटेण्ट हो रहा है कहीं किसी दिन हमारी संस्कृति और धरोहर के रूप में संजोई हुई वेद पुराण और गीता रामायण भी कहीं विदेशों में कॉपीराइट न हो जाए. हम अब नहीं चेतेंगे तो कब चेतेंगे..........? आदरणीया रमाअजयजी आपने इस परिवार के माध्यम से भारतवासी और भारतवंशियों को बहुत बड़ा संदेश, सुझाव,चेतावनी और भविष्य में संभावित आसन्न ख़तरों से आगाह कराया है. साधुवाद.

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    1. हार्दिक आभार रितुप्रण जी ,लोग इसे सिर्फ एक न्यूज़ समझ कर पद कर आगे बाद जाते हैं ,काश कुखा आप जैसी हों

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    2. आभार आदरणीया रमाअजयजी, वास्तव में आभार की पात्र आप स्वयं हैं जो सरस्वती स्वयं आपकी कलम से बरसती हैं

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    3. हार्दिक आभार ऋतुपर्ण जी

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  2. सत्य कहा आपने आदरणीया यदि ऐसी ही सुन्दर एवं सकारात्मक सोंच सभी प्राणियों में हो जाए तो वस्तुतः समस्त मानव जाति का कल्याण हो जाए. परन्तु दुर्भाग्य की बात तो यह की प्राणी सब कुछ जानता समझता हुआ भी अंजान है. इस तरह की पोस्ट पढ़कर शायद कुछ लोग नींद से जागें कुछ सीख लें. आपने यह पोस्ट सभी के साथ साझा की यह आपके दयालु ह्रदय का प्रतीक है. इस पोस्ट हेतु मेरी ओर से बधाई स्वीकारें. सादर

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